कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को हर साल अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा उनके बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य, खुशहाली और सुरक्षा की कामना के लिए किया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी 12 अक्टूबर या 13 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन सुबह से ही पूजा और व्रत की तैयारी शुरू हो जाती है। व्रत का शुभ मुहूर्त प्रातः 6 बजे से आरंभ होता है और दोपहर 12 बजे तक पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। उपवास अगले दिन प्रातः ही समाप्त किया जाता है।
अहोई अष्टमी का धार्मिक महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों के कल्याण और लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं 16 कलशों को सजाकर माता अहोई की पूजा करती हैं और उनकी कथा का पाठ करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और कथा पढ़ने से बच्चों की लंबी उम्र सुनिश्चित होती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि माताओं और बच्चों के बीच के भावनात्मक बंधन और प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। इसे करने से परिवार के सभी सदस्यों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली आती है।

पूजा-पद्धति और परंपराएं
अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपने व्रत के दौरान अन्न, जल और फल का सीमित सेवन करती हैं और अहोई माता की भक्ति में लीन रहती हैं। दिनभर माताएं पूजा करती हैं, कथा सुनती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सफलता की कामना करती हैं। इस अवसर पर कई लोग व्रत की तैयारी से लेकर पूजा तक पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, ताकि माता अहोई की कृपा उनके घर और परिवार पर बनी रहे। उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में इसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
अहोई अष्टमी और सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व
अहोई अष्टमी केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि यह माताओं और बच्चों के बीच के रिश्ते को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करती है। इस दिन पूरे परिवार में आपसी सहयोग, भाईचारा और स्नेह का माहौल बनता है। बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ यह व्रत समाज में परिवारों के बीच प्रेम और सौहार्द को भी बढ़ावा देता है।
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं की भक्ति, बच्चों के प्रति स्नेह और परिवार की खुशहाली का प्रतीक है। यह व्रत पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों को मजबूत करने के साथ-साथ धार्मिक परंपराओं को आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए पूरे मन और श्रद्धा के साथ पूजा करती हैं, जिससे परिवार में सकारात्मक ऊर्जा और आनंद का वातावरण बनता है।













