साल 2025 में दीपों का सबसे बड़ा पर्व दिवाली पूरे देश में बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी बेहद खास है। पांच दिनों तक चलने वाला यह त्योहार हर घर में खुशियां, रोशनी और उत्साह लेकर आता है। इस दौरान लोग अपने घरों को दीपों, झालरों और रंगोली से सजाते हैं, एक-दूसरे को मिठाइयां बांटते हैं और जीवन में समृद्धि की कामना करते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि इस बार दिवाली और उससे जुड़े सभी पांच त्योहार कब मनाए जाएंगे और उनका क्या महत्व है।
धनतेरस – सुख, समृद्धि और आरोग्य की शुरुआत (29 अक्टूबर 2025, बुधवार)
दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है, जिसे “धनत्रयोदशी” भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन धन्वंतरि देव की पूजा की जाती है और आरोग्य व दीर्घायु की कामना की जाती है। इसके साथ ही भगवान कुबेर और लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है।इस दिन बाजारों में जबरदस्त रौनक देखने को मिलती है। लोग बर्तन, सोना-चांदी, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदते हैं, क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। घरों को सजाया जाता है और दीपक जलाकर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
छोटी दिवाली – नरक चतुर्दशी का पावन पर्व (30 अक्टूबर 2025, गुरुवार)
धनतेरस के अगले दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध कर संसार को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था।इस दिन सुबह तेल स्नान करने और शाम को दीपदान करने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है। छोटी दिवाली को दिवाली की तैयारी का दिन भी कहा जाता है, जब लोग घरों की सजावट पूरी करते हैं और अगले दिन लक्ष्मी पूजन की तैयारी करते हैं।
मुख्य दिवाली – रोशनी और समृद्धि का पर्व (31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार)
31 अक्टूबर को इस साल मुख्य दिवाली यानी लक्ष्मी पूजा का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की जीत का प्रतीक है।इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर की विधिवत पूजा की जाती है। शाम के समय घरों में दीपक जलाए जाते हैं, रंगोली बनाई जाती है, और चारों ओर रौशनी का समुद्र फैल जाता है। लोग नए वस्त्र पहनते हैं, रिश्तेदारों के घर जाते हैं, और मिठाइयों के साथ एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।दिवाली केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह त्योहार लोगों को संदेश देता है कि जैसे दीपक अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही सद्भावना और प्रेम जीवन के अंधकार को दूर कर देते हैं।

गोवर्धन पूजा – भगवान कृष्ण की भक्ति और प्रकृति के प्रति आभार (1 नवंबर 2025, शनिवार)
दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर वृंदावन वासियों की रक्षा करने की कथा से जुड़ा है। इसीलिए इस दिन श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत का प्रतीक स्वरूप मिट्टी से आकृति बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।घर-घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं और “अन्नकूट” के रूप में भगवान को भोग लगाया जाता है। यह पर्व मनुष्य और प्रकृति के गहरे संबंध को दर्शाता है। यह बताता है कि हमें धरती और उसके उपहारों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।
भाई दूज – भाई-बहन के स्नेह का पवित्र बंधन (2 नवंबर 2025, रविवार)
पांच दिवसीय दीपोत्सव का समापन भाई दूज के दिन होता है। यह दिन भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे और उन्होंने वहां तिलक कर उनका स्वागत किया था। तभी से यह परंपरा शुरू हुई।इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं, आरती उतारती हैं और उनके दीर्घायु की कामना करती हैं। बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं और जीवनभर उनकी रक्षा का वचन निभाने का संकल्प लेते हैं। यह त्योहार राखी के समान ही भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत बनाता है।
दिवाली का महत्व – केवल रोशनी नहीं, जीवन दर्शन का प्रतीक
दिवाली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन में आशा, सकारात्मकता और नई शुरुआत का संदेश देता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ हों, अंततः प्रकाश अंधकार पर विजय प्राप्त करता है। दिवाली आत्मचिंतन, सफाई और आध्यात्मिक शुद्धता का भी समय है। लोग अपने घरों और मन दोनों को स्वच्छ करते हैं ताकि नई ऊर्जा और समृद्धि का स्वागत किया जा सके।













