उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में आज से छठ महापर्व का शुभारंभ हो गया है। यह पर्व हिन्दू धर्म में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रमुख अवसर माना जाता है। छठ पूजा मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इसे आस्था और विश्वास का प्रतीक माना जाता है और यह पर्व परिवारों में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए विशेष महत्व रखता है। छठ महापर्व हिन्दू धर्म के उन पर्वों में शामिल है, जिसमें व्रती पूरी तरह पवित्रता, संयम और श्रद्धा के साथ उपासना करते हैं।
नहाए-खाए (पहला दिन)
छठ महापर्व की शुरुआत नहाए-खाए से होती है। इस दिन व्रती नदी, तालाब या किसी जलाशय में जाकर शरीर और मन की पूर्ण पवित्रता का ध्यान रखते हुए स्नान करते हैं। इस दिन का उद्देश्य व्रती को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करना है ताकि वे आगामी तीन दिनों तक निर्जला उपवास और कठोर नियमों का पालन कर सकें। स्नान के बाद व्रती साफ-सुथरे वस्त्र पहनते हैं और शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन विशेष रूप से हल्का और पौष्टिक भोजन किया जाता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिले और व्रत के दौरान स्वास्थ्य पर कोई असर न पड़े।
खरना (दूसरा दिन)
नहाए-खाए के अगले दिन खरना का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के समय गुड़, खीर, हलवा और फल से भोग तैयार कर उपवास तोड़ते हैं। यह दिन व्रती की तपस्या और संयम की परीक्षा भी माना जाता है। रातभर व्रती उपवास का पालन करते हैं और इस दौरान कोई भी अशुद्ध या अस्वच्छ भोजन नहीं ग्रहण किया जाता। खरना का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह व्रती के शरीर और मन को अगले दिन के सूर्य अर्घ्य और छठी मैया की पूजा के लिए तैयार करता है।
सूर्य अर्घ्य और छठी मैया की पूजा (तीसरा और चौथा दिन)
छठ महापर्व का मुख्य दिन सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने का होता है। श्रद्धालु गंगा, तालाब या किसी जलाशय के किनारे खड़े होकर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं। सूर्यास्त के समय व्रती पश्चिम दिशा की ओर मुख करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जबकि सूर्योदय के समय पुनः सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है। इस दौरान व्रती दीपक जलाते हैं और ठेकुआ, फल, गुड़ और शुद्ध जल का भोग अर्पित करते हैं। पूजा के समय वातावरण में पूर्ण शांति और श्रद्धा बनी रहती है, जिससे व्रती का मन और शरीर दोनों आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं।

पारंपरिक नियम और सावधानियाँ
छठ महापर्व के दौरान कई पारंपरिक नियम और सावधानियाँ अपनाई जाती हैं। व्रती पूरी तरह साफ-सुथरे वस्त्र पहनें और पूजा सामग्री जैसे ठेकुआ, फल, गुड़ और जल शुद्ध और हल्की होनी चाहिए। निर्जला उपवास का पालन अनिवार्य है, जिसमें पानी का भी सेवन नहीं किया जाता। जलाशय या नदी के किनारे सफाई और शांति बनाए रखना आवश्यक है। व्रती ध्यान रखें कि पूजा स्थल पर किसी प्रकार का कचरा न हो और पूजा विधि के दौरान किसी भी प्रकार की जल्दबाजी या अव्यवस्था न हो।
छठ महापर्व केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आस्था, संयम, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी है। यह पर्व समाज में सौहार्द, एकता और पारिवारिक मेलजोल को भी बढ़ावा देता है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में इस वर्ष भी नहाए-खाए से लेकर सूर्योदय तक छठ महापर्व की पूरी विधि के साथ भव्य आयोजन किए जा रहे हैं। श्रद्धालु नदी और तालाबों के किनारे पूजा कर सूर्य देव और छठी मैया की कृपा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक ऊर्जा और एकजुटता का संदेश भी फैलाता है।













