छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है, जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। आज का दिन छठ व्रत का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र दिन माना जाता है। व्रती महिलाएं और श्रद्धालु आज शाम अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करेंगे। देश के विभिन्न हिस्सों में — विशेषकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के तराई क्षेत्रों में — घाटों और तालाबों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए हैं। लखनऊ, पटना, वाराणसी, मऊ और गोरखपुर जैसे शहरों में घाटों को दीपों और रंगोली से सजाया गया है। हर तरफ भक्ति, अनुशासन और आस्था की गूंज सुनाई दे रही है।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का धार्मिक महत्व
संध्या अर्घ्य का आयोजन सूर्य देव और छठी मइया के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है। मान्यता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि, शांति और स्वास्थ्य का संचार होता है। यह वह क्षण होता है जब व्रती महिलाएं पूरे दिन के कठिन निर्जला व्रत के बाद जल में खड़ी होकर सूर्य की अंतिम किरणों को अर्घ्य अर्पित करती हैं। धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख है कि यह अर्घ्य जीवन की सभी नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त कर नई ऊर्जा का संचार करता है।व्रती महिलाएं “ॐ सूर्याय नमः” का जाप करती हैं और अपने परिवार की मंगलकामना, सुख, स्वास्थ्य और संतान की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। यह पर्व प्रकृति, सूर्य और मानव जीवन के बीच के अद्भुत संतुलन का उत्सव है।
विधि-विधान और पूजन सामग्री की विशेष तैयारी
छठ पूजा का तीसरा दिन व्रतियों के लिए बेहद कठिन और अनुशासित होता है। इस दिन व्रती महिलाएं पूरा दिन बिना जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं। संध्या के समय वे सूप और डलिया में प्रसाद सजाती हैं। इसमें ठेकुआ, कसार, गन्ना, नींबू, नारियल, सिंघाड़ा, केला, मूली, अदरक और दीपक शामिल होते हैं।घाटों पर साफ-सफाई, सजावट और सुरक्षा की व्यवस्था विशेष रूप से की जाती है। श्रद्धालु अपने परिवार के साथ तालाबों, नदियों और जलाशयों के तट पर पहुंचते हैं। जब सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ता है, तब सभी व्रती महिलाएं एक साथ जल में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। उस समय चारों ओर “जय छठी मइया” के जयकारे गूंज उठते हैं।

घाटों पर भक्ति, संगीत और उल्लास का संगम
संध्या अर्घ्य के समय घाटों पर अत्यंत मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है। जगह-जगह भजन-कीर्तन, लोकगीत और छठ के पारंपरिक गीत गूंजते हैं। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजधजकर पूजा करती हैं। बच्चों और पुरुषों की सहभागिता से माहौल और भी भावनात्मक हो जाता है।प्रशासन की ओर से हर जिले में घाटों पर सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम किए गए हैं। महिला पुलिस बल की तैनाती, रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था, मेडिकल कैंप और कंट्रोल रूम बनाए गए हैं ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।
छठ पर्व का आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश
छठ महापर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह अनुशासन, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण और सामूहिकता का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें सूर्य देव के रूप में ऊर्जा और जीवन के स्रोत का सम्मान करना सिखाता है। महिलाएं चार दिनों तक कठोर नियमों और संयम के साथ यह व्रत रखती हैं, जो समर्पण और आत्मबल का अनुपम उदाहरण है।छठ पर्व यह भी सिखाता है कि जीवन में शुद्धता, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति सम्मान बनाए रखना ही सच्ची भक्ति है।
कल होगा उगते सूर्य को अर्घ्य, पूर्ण होगा महापर्व
कल छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन होगा, जिसे उषा अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपने व्रत का समापन करेंगी। यह क्षण न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि जीवन के नए आरंभ और ऊर्जा के नवसंचार का प्रतीक भी है।छठ पर्व का यह समापन हमें यह संदेश देता है कि जब तक हम प्रकृति, प्रकाश और जीवन के प्रति श्रद्धा बनाए रखेंगे, तब तक हमारी संस्कृति और सभ्यता हमेशा प्रगतिशील बनी रहेगी।













