Ram Mandir Dhwajarohan 2025: रामायण के प्रसंगों में कई ऐसे क्षण आते हैं, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि उनमें रणनीति, मनोविज्ञान और प्रतीकों की शक्ति का भी गहरा संदेश छिपा है। ऐसा ही एक प्रसंग है—भरत की सेना का आता हुआ ध्वज देखकर लक्ष्मण का चिंतित हो उठना और उस ध्वज पर बना विशेष चिह्न।
भरत लौट रहे थे श्रीराम को मनाने
अयोध्या में जब कैकयी के वरदानों के चलते श्रीराम को वनवास मिला, तो उनकी अनुपस्थिति में भरत को राज्य सौंप दिया गया। लेकिन भरत ने इस बात का विरोध किया और उन्हें मिला सिंहासन स्वीकार करने से इंकार कर दिया। वे तुरंत नन्दिग्राम से वन की ओर निकल पड़े, ताकि श्रीराम को वापस अयोध्या ले जा सकें।उनके साथ बड़ी संख्या में अयोध्या के लोग भी थे—मंत्री, गुरुजनों के वाहन, सैनिक, नागरिक और सेवक। यह समूह बाहरी रूप से एक विशाल सेना जैसा प्रतीत होता था।
लक्ष्मण ने दूर से देखा—संदेह और चिंता बढ़ी
जब भरत अपने काफ़िले के साथ चित्रकूट की ओर बढ़ रहे थे, तभी दूर से उठता हुआ सेना जैसा जुलूस दिखाई दिया।वन में रह रहे लक्ष्मण ने जब यह दृश्य पहली बार देखा, तो वे आशंकित हो गए।उन्हें लगा कि सिंहासन पाने के लिए भरत कहीं बलपूर्वक श्रीराम को नुकसान पहुँचाने तो नहीं आ रहे!कारण यह था कि काफ़िले के आगे-आगे जो ध्वज फहरा रहा था, उस पर एक ऐसा विशेष चिह्न बना था जो राजसी सेना का प्रतीक माना जाता था।
लक्ष्मण ने कहा—“भरत युद्ध करने आ रहा है!”
दूर से ध्वज देखकर व्याकुल हुए लक्ष्मण ने श्रीराम से कहा—“भैया! यह स्पष्ट रूप से राजसी ध्वज है। भरत सिंहासन प्राप्त करने के लिए सेना लेकर हमारे पास आ रहा है। अब हमें तैयार होना चाहिए।”लक्ष्मण की यह प्रतिक्रिया उनके स्वभाव के अनुरूप थी—साहसी, तेजस्वी और अपने भाई की रक्षा के लिए सदैव तत्पर।
भरत की सेना के ध्वज को देखकर लक्ष्मण का चिंतित हो जाना केवल एक भावनात्मक प्रसंग नहीं था—यह उस समय के ध्वज और प्रतीकों के सैन्य महत्व, राजनीतिक संकेतों, और राम–लक्ष्मण–भरत के परस्पर भावों को दर्शाने वाला ऐतिहासिक क्षण है।यह प्रसंग बताता है कि कभी-कभी दृश्य भ्रमित कर सकते हैं, लेकिन सच्चाई हमेशा आचरण से सामने आती है।
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