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Badrinath Temple: क्या है बद्रीनाथ मंदिर के पीछे की कहानी? जानें कैसे पड़ा यह नाम…

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Badrinath Temple: उत्तराखंड की देवभूमि में बसा बद्रीनाथ धाम, न सिर्फ एक मंदिर है बल्कि यह आस्था, इतिहास और प्रकृति की खूबसूरती का संगम है। चार धामों में शामिल यह तीर्थस्थल, भगवान विष्णु को समर्पित है और भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में इसकी गिनती होती है। हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इस पावन स्थल के दर्शन के लिए खिंचे चले आते हैं। आइए, जानते हैं बद्रीनाथ धाम की खासियत, इसकी स्थापना की कहानी और इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं।

बद्रीनाथ नाम के पीछे की कहानी

बद्रीनाथ नाम के पीछे की कहानी बहुत रोचक और भावनात्मक है। इस नाम की उत्पत्ति ‘बदरी’ शब्द से हुई है, जो एक विशेष प्रकार की जंगली बेरी (Berry) होती है। मान्यता है कि एक बार भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे और सूर्य की तपन से उन्हें बचाने के लिए देवी लक्ष्मी ने एक बदरी (बेरी) के पेड़ का रूप ले लिया। उन्हीं की तपस्या और देवी लक्ष्मी की छाया के कारण इस स्थान को “बद्री-नाथ” कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है “बदरी का स्वामी”।

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास

बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि उन्हें अलकनंदा नदी के किनारे भगवान विष्णु की एक काले पत्थर की मूर्ति मिली थी। इस मूर्ति को उन्होंने तप्त कुंड के पास एक गुफा में स्थापित किया, और बाद में वहां मंदिर का निर्माण कराया। यह वही मूर्ति है जिसे आज भी मुख्य गर्भगृह में पूजा जाता है।

आदि शंकराचार्य को हिंदू धर्म के चार धामों की पुनर्स्थापना और धार्मिक पुनर्जागरण के लिए जाना जाता है, और बद्रीनाथ धाम उनकी सबसे प्रमुख देन मानी जाती है।

पौराणिक मान्यताएं और महिमा

बद्रीनाथ धाम को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। स्कंद पुराण, वामन पुराण और अन्य ग्रंथों में इस तीर्थ की महिमा का उल्लेख मिलता है। वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि ने यहीं पर कठोर तप किया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों की अंतिम यात्रा बद्रीनाथ से होकर ही स्वर्ग की ओर गई थी। देवर्षि नारद, कपिल मुनि, गौतम ऋषि और कश्यप मुनि जैसे महान तपस्वियों ने भी यहां साधना की थी। यहां एक विशेष तप्त कुंड (गर्म जल का झरना) भी है, जिसे भगवान शिव का रूप माना जाता है। दर्शन से पहले यहां स्नान करना धार्मिक रूप से आवश्यक माना गया है।

मंदिर का वातावरण

बद्रीनाथ धाम हिमालय की गोद में बसा हुआ है और चारों ओर से बर्फ से ढकी पहाड़ियों, अलकनंदा नदी और हरे-भरे वृक्षों से घिरा हुआ है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता किसी का भी मन मोह लेने के लिए पर्याप्त है। हर साल जब मंदिर के कपाट खुलते हैं, तो वहां की सजीवता और भक्तों की श्रद्धा देखने लायक होती है।

2025 में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 4 मई को खुलेंगे, और एक बार फिर यह पवित्र धाम श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए तैयार होगा।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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