Translate Your Language :

Latest Updates
Bhagavad Gita teachings: भगवत गीता का सोलहवां अध्याय, भगवान कृष्ण ने बताए हैं तीन महापाप, जो इंसान की जिंदगी कर देते हैं बर्बाद… Spiritual advice for good luck: कौन-सा व्रत बदल देगा किस्मत? प्रेमानंद महाराज ने बताया Rahu-Ketu Dosh: लगातार बढ़ रहे संकटों की जड़ हो सकते हैं छाया ग्रह, इन उपायों से मिलेगी राहु-केतु के कष्टों से मुक्ति Chanakya Niti: प्रार्थना से नहीं मेहनत से मिलेगी सफलता, छात्र हों या बड़े सफल होने के लिए इन चीजों से रहें कोसों दूर Swapna Shastra: किसी को नहीं बताने चाहिए ये 4 सपने, नाराज हो जाती हैं माता लक्ष्मी! Indresh Upadhyay: लाला इंद्रेश ने सबके मन जीते…जब प्रेमानंद महाराज से मिलने पहुंचे कथावाचक के पिता! Vastu Tips: सुबह घर से निकलते समय हाथ से इन चीजों के गिराने से होती है अनहोनी! Jadu Lagane Ke Niyam : झाड़ू नियमों के बारे में…आर्थिक परेशानियों का कारण बन सकती है झाड़ू, वास्तु अनुसार शाम को संभलकर करें झाड़ू का प्रयोग Sukrawar Ki Aarti: शुक्रवार को पढ़ें माता लक्ष्मी की ये आरती, घर में कभी नहीं होगी धन-धान्य की कमी! Katha Vachak Indresh Upadhyay wedding: कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय आज शिप्रा के साथ लेंगे सात फेरे, जयपुर में बजेगी शहनाई
Home » Uncategorized » Bhagavad Gita teachings: भगवत गीता का सोलहवां अध्याय, भगवान कृष्ण ने बताए हैं तीन महापाप, जो इंसान की जिंदगी कर देते हैं बर्बाद…

Bhagavad Gita teachings: भगवत गीता का सोलहवां अध्याय, भगवान कृष्ण ने बताए हैं तीन महापाप, जो इंसान की जिंदगी कर देते हैं बर्बाद…

Facebook
X
WhatsApp

Bhagavad Gita teachings: भगवत गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का विज्ञान है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य के स्वभाव, उसके कर्म और जीवन के उद्देश्य को सरल शब्दों में समझाया है. गीता के सोलहवें अध्याय “दैवासुर सम्पद्विभाग योग” में श्रीकृष्ण ने मनुष्य के भीतर मौजूद दिव्य और आसुरी गुणों का वर्णन करते हुए तीन ऐसे दोष बताए हैं,जिन्हें उन्होंने सीधा विनाश का कारण कहा है. ये हैं काम, क्रोध और लोभ. श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये तीनों दोष मनुष्य की बुद्धि, चरित्र और जीवन को अंदर से खोखला कर देते हैं. इसलिए जो व्यक्ति इनसे बच गया, वह जीवन में सफलता, शांति और सम्मान प्राप्त करता है.

विनाश की ओर ले जाने वाले तीन ‘महापाप’
सोलहवें अध्याय के श्लोक संख्या 21 में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से तीन ऐसे दुर्गुणों के बारे में बताया है, जिन्हें मनुष्य की आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन द्वार कहा गया है. ये तीन महापाप इंसान की ज़िंदगी को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं और उन्हें जीवन के उच्च लक्ष्यों से भटका देते हैं.

भगवत गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का विज्ञान है. इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य के स्वभाव, उसके कर्म और जीवन के उद्देश्य को सरल शब्दों में समझाया है. गीता के सोलहवें अध्याय “दैवासुर सम्पद्विभाग योग” में श्रीकृष्ण ने मनुष्य के भीतर मौजूद दिव्य और आसुरी गुणों का वर्णन करते हुए तीन ऐसे दोष बताए हैं, जिन्हें उन्होंने सीधा विनाश का कारण कहा है. ये हैं काम, क्रोध और लोभ. श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये तीनों दोष मनुष्य की बुद्धि, चरित्र और जीवन को अंदर से खोखला कर देते हैं. इसलिए जो व्यक्ति इनसे बच गया, वह जीवन में सफलता, शांति और सम्मान प्राप्त करता है.

काम (अत्यधिक वासना और इच्छा)
बर्बादी का कारण: जब मनुष्य की इच्छाएँ असीमित हो जाती हैं, तो वह उन्हें पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. यह उसे अनैतिक कार्य करने, दूसरों का शोषण करने और अपने कर्तव्यों को भूलने के लिए प्रेरित करता है.

परिणाम: यह दुर्गुण व्यक्ति को हमेशा अतृप्त रखता है. इच्छाएं पूरी न होने पर दुःख और क्रोध उत्पन्न होता है, और पूरी होने पर और अधिक इच्छाएँ जन्म लेती हैं. इस प्रकार, मनुष्य कभी भी शांति और संतोष प्राप्त नहीं कर पाता.

गुस्सा
बर्बादी का कारण: क्रोध बुद्धि का नाश कर देता है. गीता के ही दूसरे अध्याय में कहा गया है कि क्रोध से मूढ़ता (विवेकहीनता) आती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रम (सही-गलत की पहचान खत्म) होता है, और स्मृति भ्रम से बुद्धि का नाश हो जाता है. बुद्धि के नाश होने पर मनुष्य का पतन निश्चित है.

परिणाम: क्रोध में व्यक्ति ऐसे निर्णय ले लेता है या ऐसे वचन बोल देता है जिसके कारण उसके संबंध, स्वास्थ्य और करियर सब बर्बाद हो जाते हैं. यह न केवल दूसरों को हानि पहुँचाता है, बल्कि स्वयं व्यक्ति की मानसिक शांति को भी नष्ट कर देता है.

लालच
बर्बादी का कारण: लोभी व्यक्ति केवल अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है. वह धन इकट्ठा करने में इतना व्यस्त हो जाता है कि न्याय, धर्म, और दया जैसे मानवीय गुणों को त्याग देता है. लालच उसे चोरी, धोखा, और अन्याय जैसे पाप कर्मों की ओर धकेलता है.

परिणाम: लालच व्यक्ति को कृपण (कंजूस) और स्वार्थी बना देता है. वह दूसरों की मदद नहीं कर पाता और हमेशा अभाव की भावना में जीता है, भले ही उसके पास कितना भी धन क्यों न हो. यह सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को कमजोर कर देता है.

Madhumita Verma
Author: Madhumita Verma

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताजा खबरें