Hanuman Ji Katha: हनुमान जी भगवान श्रीराम के परम भक्त माने जाते हैं. हनुमान जी भगवान शिव के रुद्रावतार हैं. हनुमान जी ने त्रेता युग में जन्म लिया था. वो त्रेता युग के बाद द्वापर युग में थे और अब कलयुग में भी हनुमान जी वास कर रहे हैं. हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है. वो कलयुग के देवता माने जाते हैं. शनिवार और मंगलवार का दिन हनुमान की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे शुभ अवसर माना जाता है.
हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति को सारे भय और सकंटों से मुक्ति मिलती है. जीवन में आर्थिक संपन्नता आती है, लेकिन क्या आप जानते हैंं कि हनुमान जी के कितने पिता हैं? अगर नहीं जानते हैं, तो इस बारे में कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने बताया है. उन्होंने हनुमान चालीसा के हवाले से हनुमान जी के पिता के बारे में बताया है. आइए जान लेते हैं.
हनुमान जी के कितने पिता हैं?
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने कथा के दौरान पूछा कि हनुमान जी के कितने पिता हैं? जब कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने कहा कि तुम्हारा भला हो. जब तुम्हें ही नहीं पता तो अपने बच्चों को क्या सिखाओगे? इसके बाद उन्होंने कहा कि हनुमान चालीसा में साफ तौर पर बताया गया है कि हनुमान जी के कितने पिता हैं? देवकीनंदन ठाकुर ने हनुमान चालीसा की चौपाई और दोहा कहा.
चौपाई
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन।
दोहा
पवनतनय संकट रहन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सिता सहित ह्रदय बसुहु सुर भूप।
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने बताया कि हनुमान जी के तीन पिता हैं. भगवान शिव, पवन देव और केसरी जी. त्रेता युग में भगवान शिव ही हनुमान जी बनकर आए थे. उन्होंने नारद जी के प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि नारद ने जब भगवान नारायण से विवाह करने की बात कही तो भगवान ने उनको बंदर बना दिया. फिर जब नारद जी भगवान शिव के पास गए थे तो उन्होंने अपने दूतों को उनके पीछे भेजा.
भगवान शिव को पता चली ये बात
इसके बाद जब भगवान शिव ने पूछा तो उनके दूतों ने उन्हें बताया कि भगवान नारायण ने नारद जी को बंदर बना दिया. बाद में पता चला कि भगवान नारायण नाराद जी को माया से बचाना चाहते थे. जिस समय नारद जी सभा में बंदर बनकर गए थे, उस दिशा में विश्व मोहिनी ने देखा ही नहीं. तब शिव जी को पता चला कि भगवान नारायण जिसको माया से बनाना चाहते हैं, उसको बंदर बना देते हैं.
उसी समय भगवान शिव ने निश्चय किया कि वो भी बंदर बनकर श्रीराम की सेवा करेंगे. समुद्र मंथन के समय जब नारायण भगवान ने मोहिनी रूप धारण किया तो भगवान शिव ने कहा कि उनको वो रूप देखना है. फिर जब भगवान नारायण ने शिव जी को मोहिनी रूप दिखाया तो वो उस पर इतने आशक्त हो गए कि उनका सारा तेज स्खलित हो गया.
पवन देव ने की सप्त ऋषियों की सहायता
इसके बाद भगवान शिव के तेज को नारायण भगवान ने संभाला और सप्त ऋषियों से कहा कि वो उसे अंजना के गर्भ तक पहुंचाएं. सप्त ऋषि उस तेज को अंजना मां पास लेकर गए. वहां सप्त ऋषियों ने मंत्र के माध्यम से कान के द्वार से भगवान शिव का तेज अंजना मां के गर्भ तक पहुंचाने के लिए पवन देव से सहायता मांगी. पवन देव ने इसमें सप्त ऋषियों की सहायता की.
हालांकि, अंजना मां को इस बात का पता चल गया कि उनके गर्भ भीतर शुक्र प्रवेश हुआ है. इस पर अंजना ने श्राप देने की बात कही तो पवन देव उनके सामने आए और कहा कि ये भगवान नारायण और शिव जी की इच्छा के अनुसार हुआ है. आपके गर्भ से एक भगवान का भक्त जन्म लेगा. फिर जब अंजना मां ने अपने कुंवारी होने की बात कही तो उनका विवाह केसरी जी से करा दिया गया. इस तरह से ये तीनों हनुमान जी के पिता हैं.












