Parashuram Jayanti 2025: हिंदू धर्म में परशुराम जयंती का विशेष महत्व है। माना जाता है कि भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था, जिसे हर वर्ष परशुराम जयंती के रूप में श्रद्धा से मनाया जाता है। इस बार परशुराम जयंती 29 अप्रैल 2025 को पड़ रही है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से मानसिक शांति, शारीरिक बल और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
आइए जानते हैं, परशुराम जयंती के दिन पूजा करने की सही विधि और इसका महात्म्य क्या है?
ब्रह्म मुहूर्त में करें दिन की शुरुआत
परशुराम जयंती के दिन दिनचर्या की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर करनी चाहिए। यह समय पूजा-पाठ और साधना के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
सुबह उठकर शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें। भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र को वहां स्थापित करें और गंगाजल का छिड़काव कर शुद्ध वातावरण तैयार करें।
भगवान परशुराम की पूजा विधि
- भगवान परशुराम को चंदन और रोली का तिलक लगाएं।
- अक्षत (चावल) और पुष्प अर्पित करें।
- मन में श्रद्धा और भक्ति का भाव बनाए रखें।
पूजा के समय ‘ॐ परशुरामाय नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप अवश्य करें। ऐसा करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है।
इस पूजा में तुलसी का विशेष महत्व
परशुराम जयंती के दिन तुलसी के पत्ते भगवान को अर्पित करना बहुत शुभ माना गया है। तुलसी को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए पूजा में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें। इसके अलावा, इस दिन तुलसी का सेवन भी बेहद लाभकारी होता है।
व्रत, दान और कथा का पुण्य
इस दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। व्रत रखने से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके पापों का नाश होता है। साथ ही, इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करना अत्यंत फलदायक माना जाता है। इससे भगवान परशुराम अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
इसके अतिरिक्त, परशुराम जयंती पर भगवान परशुराम की कथा सुनना या सुनाना भी शुभ माना जाता है। इससे व्यक्ति भगवान परशुराम के जीवन से जुड़े आदर्शों और शिक्षाओं को समझ पाता है, और अपने जीवन में उन्हें अपनाने की प्रेरणा लेता है।
