Rama Ekadashi Vrat Katha in Hindi: वैसे तो प्रत्येक सामान्य वर्ष में चौबीस एकादशी पड़ती हैं, इन सभी तिथियों पर भक्तजन व्रत रखते हैं। और भगवान् विष्णु का भजन ध्यान करते हैं। इस तरह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी व्रत को रमा एकादशी कहते हैं। इस व्रत में सभी भक्तों की इस पुण्यदायी कथा का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। मान्यता है कि यदि व्रत रखने वाला कोई व्यक्ति इस कथा का पाठ या श्रवण नहीं करता है, तो उसे व्रत के पूर्ण लाभ नहीं मिलते हैं।
कार्तिक कृष्ण एकादशी (रमा एकादशी) का माहात्म्य
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा – “हे भगवान! कृपया बताइए कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, इसे करने की विधि क्या है, और इसे करने से क्या फल मिलता है?”
भगवान श्रीकृष्ण बोले – “हे राजन! कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी बहुत पवित्र है और बड़े-बड़े पापों को नष्ट करने वाली है। अब मैं इसका महत्व और कथा तुम्हें सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।”
रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)
बहुत समय पहले की बात है, एक राजा हुआ करता था जिसका नाम मुचुकुंद था। वह बहुत ही धर्मात्मा, न्यायप्रिय और भगवान विष्णु का भक्त था। उसकी मित्रता इंद्रदेव, यमराज, कुबेर, वरुण और विभीषण से थी। वह अपने राज्य में न्यायपूर्वक शासन करता था।
राजा मुचुकुंद की एक सुंदर और गुणी पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। उसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था। एक बार शोभन अपनी पत्नी चंद्रभागा के साथ अपने ससुराल आया। उसी समय कार्तिक मास की पुण्यदायिनी रमा एकादशी आने वाली थी।
जब एकादशी का व्रत निकट आया, तो चंद्रभागा बहुत चिंतित हो गई। वह सोचने लगी – “मेरे पति बहुत कमजोर हैं, और मेरे पिता की आज्ञा बहुत कठोर है। मेरे पिता इस दिन पूरे राज्य में सख्ती से उपवास करवाते हैं। अगर मेरे पति व्रत नहीं रखेंगे, तो पिता उन्हें दंड देंगे, और अगर व्रत रखेंगे तो उनकी हालत खराब हो जाएगी।”
राजा मुचुकुंद ने दशमी तिथि के दिन अपने राज्य में ढोल बजवाकर घोषणा करवाई – “सुनो-सुनो! राज्य के सभी लोग एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करेंगे। जो व्यक्ति इस दिन अन्न खाएगा, उसे बड़ा पाप लगेगा।”
राजा का आदेश सुनकर सभी लोग तैयार हो गए। लेकिन यह सुनकर शोभन बहुत चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा – “हे प्रिये चंद्रभागा! अब मैं क्या करूँ? मैं बहुत दुर्बल हूँ, भूखा नहीं रह सकता। अगर मैंने कुछ नहीं खाया, तो मेरी मृत्यु निश्चित है। ऐसा कोई उपाय बताओ जिससे मेरे प्राण बच सकें।”
चंद्रभागा ने दुखी होकर कहा – “प्रियवर, मेरे पिता के राज्य में कोई भी व्यक्ति एकादशी के दिन अन्न नहीं खाता। पशु-पक्षी तक उस दिन कुछ नहीं खाते। यहाँ तक कि नदी के किनारे रहने वाले जीव भी उस दिन उपवास करते हैं। इसलिए आप चाहें तो किसी दूसरे स्थान पर जाकर व्रत से बच सकते हैं, लेकिन पिता के आदेश के विपरीत यहाँ रहना संभव नहीं है।”
शोभन ने कहा – “ठीक है, मैं भी देखता हूँ कि मैं यह व्रत निभा पाता हूँ या नहीं।”
फिर एकादशी का दिन आया। सभी लोग व्रत और पूजा में लगे। शोभन ने भी अपनी पत्नी के साथ व्रत करने का निश्चय किया, लेकिन वे बहुत कमजोर थे। उपवास के कारण उनकी तबीयत बिगड़ गई। वे दिनभर भूखे-प्यासे रहे और द्वादशी आने से पहले ही उनके प्राण निकल गए। राजा मुचुकुंद को जब यह बात पता चली, तो उन्हें बहुत दुख हुआ, पर उन्होंने समझा कि यह सब भगवान की इच्छा थी।
चंद्रभागा भी अपने पति की मृत्यु से बहुत दुखी थी, लेकिन उसने अपने व्रत को पूरा किया। व्रत के बाद जब वह स्नान और दान करने लगी, तो उसने भगवान विष्णु से अपने पति की मुक्ति के लिए प्रार्थना की।
उसके व्रत और भक्ति के प्रभाव से, शोभन को मृत्यु के बाद एक बहुत ही सुंदर दिव्य नगर मिला। वह स्वर्ग में पहुँच गया, जहाँ सोने-चाँदी के महल, रत्नों से सजी सड़कें और सुख-सुविधाएँ थीं। वहाँ सब कुछ दिव्य और आनंदमय था।
कुछ समय बाद राजा मुचुकुंद के राज्य से एक ब्राह्मण स्वर्ग की यात्रा पर गया। वहाँ उसने शोभन को देखा और पहचान लिया। उसने पूछा – “राजकुमार! आप तो हमारे राजा मुचुकुंद के दामाद शोभन हैं, है ना? आपने यह दिव्य लोक कैसे पाया?”
रमा एकादशी व्रत का फल (Rama Ekadashi Vrat)
शोभन ने कहा – “हाँ, मैं वही हूँ। यह सब मेरी पत्नी चंद्रभागा के पुण्य और रमा एकादशी के व्रत के फल से मिला है। यह नगर और वैभव सब उसी व्रत का परिणाम है। लेकिन यह सब अभी स्थायी नहीं है, क्योंकि मैंने वह व्रत मन से पूर्ण श्रद्धा के साथ नहीं किया था।”
ब्राह्मण जब पृथ्वी पर लौटा, तो उसने सारी बातें राजा मुचुकुंद और चंद्रभागा को बताईं। यह सुनकर चंद्रभागा ने भगवान विष्णु की भक्ति में ध्यान लगाया और अपने पति की आत्मा के कल्याण के लिए तप किया। उसके पुण्य से शोभन का दिव्य लोक स्थायी हो गया, और दोनों का अंत में स्वर्ग में मिलन हुआ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: “हे युधिष्ठिर! जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से रमा एकादशी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर परमधाम प्राप्त करता है। इस व्रत का फल इतना महान है कि इसका वर्णन भी संभव नहीं है। यह व्रत धन, सुख और मोक्ष तीनों देता है।”













