सप्ताह का पहला दिन यानी सोमवार, हिंदू धर्म में देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा के लिए बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु सोमवार के दिन विधिपूर्वक व्रत रखते हैं और सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करते हैं, उन्हें मनचाहा वरदान प्राप्त होता है। साथ ही, विवाह में आ रही बाधाएं भी दूर होती हैं। आइए जानते हैं सोमवार को भगवान शिव को प्रसन्न करने के सरल उपाय।
क्यों खास है सोमवार?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार का दिन पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से न केवल वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है, बल्कि जीवन के कई संकटों से भी मुक्ति मिलती है। भक्त इस दिन प्रातः स्नान करके शुद्ध मन से शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं। विशेष रूप से शिव चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है, जिससे समस्त भय और संकट दूर हो जाते हैं।
सोमवार को शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं?
सोमवार की पूजा में शिवलिंग का अभिषेक विशेष सामग्रियों से करना चाहिए। धर्मशास्त्रों के अनुसार, इन वस्तुओं से भगवान शिव का अभिषेक करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं: जल: सबसे पवित्र और सरल अर्पण, दही: शीतलता और शुद्धता का प्रतीक, दूध: सौम्यता और श्रद्धा का भाव, फूल: विशेषकर बिल्व पत्र अर्पित करना सर्वोत्तम माना जाता है। इसके साथ ही फल और मिठाई का भोग भगवान भोलेनाथ को अर्पित करना चाहिए।
इन सभी के साथ भोनेनाथ भाव और शृद्धा के भूखे हैं, साधन के नहीं। इसलिए यह सभी सामग्री भगवान शिव को सच्ची शृद्धा और भक्तिभाव के साथ अर्पित करना चाहिए।
शिव चालीसा लिरिक्स
इसके साथ ही सोमवार को शिव चालीसा का पाठ करना बहुत ही शुभ माना गया है। शिव चालीसा भगवान शिव की महिमा और गुणों का विस्तार पूर्वक वर्णन करती है और उनकी कृपा प्राप्त करने का यह सरल मार्ग है। चालीसा का नियमित पाठ जीवन के समस्त पापों का नाश करता है और जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति दिलाता है।
॥ श्री शिव चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
