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Som Pradosh Vrat Katha: सोम प्रदोष पर जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगी भगवान भोलेनाथ की कृपा

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Som Pradosh Vrat Katha in Hindi: हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा व आराधना का विशेष महत्व है, और उन्हीं की कृपा पाने के लिए श्रद्धालु अनेक व्रत-उपवास करते हैं। ऐसे ही प्रमुख व्रतों में एक है प्रदोष व्रत। यह व्रत विशेष रूप से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है और हर माह में दो बार आता है – एक शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में और दूसरा कृष्ण पक्ष त्रयोदशी में।

आज सोमवार, 23 जून 2025 को आषाढ़ मास का सोम प्रदोष व्रत है। सोम प्रदोष का दिन और महत्व दोनों ही खास माने जाते हैं, क्योंकि सोमवार भी शिवजी को अति प्रिय है। इस दिन व्रत रखने और प्रदोष काल में शिवजी की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

प्रदोष व्रत और पूजा विधि

प्रदोष व्रत में पूजा का सबसे श्रेष्ठ समय प्रदोष काल होता है, जो कि सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले आरंभ होकर सूर्यास्त के थोड़े बाद तक रहता है। इस समय में भगवान शिव का जलाभिषेक, धूप-दीप, बिल्वपत्र अर्पण और विशेष व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

व्रत रखने वाले भक्त दिन भर उपवास रखते हैं और शाम को मंदिर जाकर भगवान शिव-पार्वती की आरती करते हैं। इस व्रत के साथ कथा का पाठ करने से शिवजी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ जीवन यापन के लिए भीख मांगती थी। उसका पति स्वर्ग सिधार चुका था और अब उसका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था।

एक दिन वह अपने बेटे के साथ घर लौट रही थी तो रास्ते में उसे एक घायल युवक कराहता हुआ मिला। करुणा से भरकर उसने उसे अपने घर लाकर सेवा की। वह युवक विदर्भ राज्य का राजकुमार निकला, जिसके पिता को शत्रु राज्य ने बंदी बना लिया था और अब वह बेघर होकर भटक रहा था।

ब्राह्मणी का हृदय बड़ा था और वह शिवभक्त भी थी। वह नियमित रूप से प्रदोष व्रत करती और भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करती थी। राजकुमार वहीं रहने लगा और ब्राह्मण-पुत्र से मित्रता कर ली।

इसी दौरान एक दिन गंधर्व कन्या अंशुमति ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन वह अपने माता-पिता के साथ उसे देखने आई। राजकुमार उन्हें भी योग्य वर लगा। कुछ दिन बाद गंधर्व माता-पिता को स्वप्न में भगवान शिव ने दर्शन देकर आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए – और फिर वैसा ही हुआ।

प्रदोष व्रत और शिव भक्ति के प्रभाव से आगे चलकर गंधर्व सेना की मदद से राजकुमार ने अपने राज्य को शत्रुओं से मुक्त कराया और पिता को बंदीगृह से छुड़ाया। अपने ब्राह्मण मित्र को प्रधानमंत्री बनाया और ब्राह्मणी को मां समान मानकर सम्मान दिया।

Shivam Verma
Author: Shivam Verma

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