Ujjain Mahakaleshwar Mandir Ka Itihas: उज्जैन मध्य प्रदेश का एक ऐसा शहर है जो अपनी आध्यात्मिकता और ऐतिहासिकता के लिए देश-विदेश में मशहूर है। यहाँ शिप्रा नदी के किनारे बसा श्री महाकालेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे काल का स्वामी यानी महाकाल के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की खासियत इसका दक्षिणमुखी स्वयंभू शिवलिंग है जो विश्व में अपनी तरह का एकमात्र है। सावन का महीना और खासकर सावन सोमवार इस मंदिर में भक्ति का अनूठा रंग लेकर आता है। यहाँ की भस्म आरती और सावन में निकलने वाली शाही सवारी भक्तों के लिए विशेष आकर्षण है। लेकिन सावन सोमवार से जुड़ी एक ऐसी कहानी है जो इस मंदिर को और भी रहस्यमयी बनाती है। आइए जानते हैं महाकालेश्वर मंदिर के इतिहास वास्तुकला सांस्कृतिक महत्व और सावन सोमवार की खास कहानी को विस्तार से।
Ujjain Mahakaleshwar Mandir Ka Itihas: महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास
महाकालेश्वर मंदिर का उल्लेख शिव पुराण महाभारत और स्कंद पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसे पृथ्वी का नाभिस्थल माना जाता है क्योंकि इसके शिखर से कर्क रेखा गुजरती है। किंवदंती के अनुसार उज्जैन जिसे पहले अवंतिका नगरी कहा जाता था में एक शिवभक्त राजा चंद्रसेन रहते थे। वे भगवान शिव की पूजा में हमेशा लीन रहते थे। एक दिन एक ग्वाले का बेटा श्रीकर राजा के साथ पूजा में शामिल होना चाहता था लेकिन महल के पहरेदारों ने उसे शहर के बाहर शिप्रा नदी के किनारे भेज दिया। उसी समय उज्जैन के शत्रु राजा रिपुदमन और सिंहदित्य ने राक्षस दूषण के साथ मिलकर अवंतिका पर हमला कर दिया।
श्रीकर ने शिप्रा नदी के किनारे भगवान शिव से प्रार्थना शुरू की। उसकी भक्ति इतनी गहरी थी कि वह जोर-जोर से शिव का नाम जपते हुए बेहोश हो गया। उसकी माँ ने गुस्से में एक पत्थर फेंका लेकिन श्रीकर की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने राक्षस दूषण का वध किया और अवंतिका की रक्षा की। इसके बाद श्रीकर की भक्ति को देखकर शिव ने स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के रूप में यहाँ निवास करने का फैसला किया। तभी से यह मंदिर महाकालेश्वर के नाम से जाना जाता है।
शिव पुराण के अनुसार इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालक पिता नंद की आठवीं पीढ़ी पहले हुई थी। यह मंदिर कई बार आक्रमणों का शिकार हुआ। 1234-35 में इल्तुतमिश ने इसे नष्ट कर दिया और ज्योतिर्लिंग को पास के कोटितीर्थ कुंड में फेंक दिया गया। बाद में मराठा दीवान रामचंद्र बाबा सुकथनकर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। जलालुद्दीन और अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस पर हमले किए लेकिन भक्तों की आस्था ने इसे हर बार पुनर्जनन दिया। आज यह मंदिर उज्जैन जिला कलेक्ट्रेट के अधीन है और इसका प्रबंधन महाकालेश्वर मंदिर समिति करती है।
Ujjain Mahakaleshwar Mandir Ka Itihas: मंदिर की वास्तुकला
महाकालेश्वर मंदिर शिप्रा नदी के तट पर बसा है और इसकी वास्तुकला नागर शैली को दर्शाती है। मंदिर का शिखर आकाश को छूता हुआ प्रतीत होता है और इसका भव्य प्रवेश द्वार भक्तों में श्रद्धा जगाता है। मंदिर का गर्भगृह छोटा और पवित्र है जहाँ दक्षिणमुखी स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग काले पत्थर से बना है और इसकी सतह चमकदार है। गर्भगृह के ऊपर चाँदी का जलाधारी है जो शिवलिंग को और भी आकर्षक बनाता है। मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर हैं जैसे अवंतिका देवी यानी माता पार्वती का मंदिर जो राम मंदिर के पीछे पालकी द्वार पर है। इसके अलावा वृद्ध महाकालेश्वर अनादिकल्पेश्वर और सप्तऋषि मंदिर भी यहाँ की शोभा बढ़ाते हैं। मंदिर के पास कोटितीर्थ कुंड है जो धार्मिक स्नान के लिए महत्वपूर्ण है। 2022 में शुरू हुआ महाकाल लोक कॉरिडोर इस मंदिर की भव्यता को और बढ़ाता है। यह 900 मीटर लंबा कॉरिडोर है जिसमें 108 खंभे 200 मूर्तियाँ और शिव कथाओं से जुड़े भित्ति चित्र हैं। रुद्रसागर झील के किनारे बने इस कॉरिडोर में रंग-बिरंगी रोशनी रात में इसे और खूबसूरत बनाती है।
Ujjain Mahakaleshwar Mandir Ka Itihas:भस्म आरती का महत्व
महाकालेश्वर मंदिर की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। यह सुबह 4 बजे होती है और इसमें श्मशान की भस्म से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव भस्म में निवास करते हैं और यह आरती उनके काल को जीतने वाले स्वरूप को दर्शाती है। सावन के सोमवार को यह आरती और भी खास हो जाती है। भक्तों को इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग करनी पड़ती है। कोविड के दौरान भक्तों की संख्या सीमित थी लेकिन अब सामान्य स्थिति में हजारों लोग इसमें शामिल होते हैं। भस्म आरती में शामिल होने का अनुभव अपने आप में अनूठा है। भक्त बताते हैं कि जब पुजारी मंत्रोच्चार के साथ भस्म चढ़ाते हैं तो पूरा गर्भगृह हर हर महादेव के नाद से गूंज उठता है। सावन में यहाँ का माहौल और भी भक्तिमय हो जाता है क्योंकि भक्त काँवड़ लेकर शिप्रा नदी से जल लाते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन की शान और भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक अनमोल रत्न है। इसका स्वयंभू दक्षिणमुखी शिवलिंग भस्म आरती और सावन की शाही सवारी इसे अनूठा बनाते हैं। सावन सोमवार की कहानियाँ जैसे बुजुर्ग महिला का चमत्कार और शिवलिंग की चमक भक्तों की आस्था को और गहरा करती हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। अगर आप भगवान शिव की भक्ति और उज्जैन की आध्यात्मिकता का अनुभव करना चाहते हैं तो सावन के सोमवार को महाकालेश्वर मंदिर जरूर जाएँ। यहाँ का हर पल आपको भक्ति और शांति से भर देगा।
